गया।दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) में “बाढ़ जोखिम आकलन एवं प्रबंधन में भू-अवलोकन प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में” विषय पर सात-दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ उद्घाटन समारोह के साथ हुआ । जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि सीयूएसबी के भूविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला भारत सरकार के आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम के तहत इसरो द्वारा प्रायोजित की गई है। कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह के मार्गदर्शन में आयोजित कार्यशाला में देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 25 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है । कार्यशाला का उद्घाटन कुलपति प्रो. के.एन. सिंह ने मुख्य अतिथि प्रो. एच.बी. श्रीवास्तव, पूर्व कुलपति, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु, प्रो. प्रधान पार्थ सारथी (डीन, स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल एंड एनवायर्नमेंटल साइंस, सीयूएसबी), प्रो. दुर्ग विजय सिंह (निदेशक, आर एंड डी सेल, सीयूएसबी), प्रो. प्रफुल्ल सिंह, विभागाध्यक्ष, भूविज्ञान (कार्यशाला के संयोजक) एवं सभागार में मौजूद अन्य लोगों की उपस्थिति में किया ।
कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में बाढ़ प्रबंधन गतिविधि और बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के उपयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने बाढ़ की घटना के लिए स्थलाकृति और भौगोलिक स्थानों की भूमिका पर भी जोर दिया। कुलपति महोदय ने सुझाव दिया कि नीति निर्माताओं द्वारा बाढ़ के प्रभाव और इसके प्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए टिकाऊ भूमि उपयोग योजना को अपनाया जाना चाहिए।
मुख्य अतिथि प्रो. एच.बी. श्रीवास्तव, पूर्व कुलपति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु ने आपदा के क्षेत्र में हाल की चुनौतियों, विशेष रूप से बाढ़ प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया। प्रो. श्रीवास्तव ने बाढ़ प्रबंधन के लिए सुदूर संवेदन डेटा और क्षेत्रीय भूवैज्ञानिक मानचित्रण के माध्यम से विस्तृत जांच का सुझाव दिया। एसईबीईएस के डीन प्रो. प्रधान पार्थ सारथी ने बिहार में जलवायु परिवर्तन और बाढ़ प्रबंधन प्रथाओं के प्रभाव पर जोर दिया। प्रो. दुर्ग विजय सिंह (निदेशक अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ) ने आपदा प्रबंधन में युवा शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों के बीच इस तरह की कार्यशालाओं और क्षमता निर्माण के महत्व के बारे में बात की।
इससे पहले औपचारिक उद्घाटन के बाद अपने स्वागत भाषण में भूविज्ञान विभागाध्यक्ष और संयोजक प्रो. प्रफुल्ल सिंह ने कार्यक्रम के उद्देश्य और कार्यशाला के तहत विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया। प्रो. सिंह ने इस कार्यशाला को प्रायोजित करने और समर्थन देने के लिए भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस), देहरादून, इसरो, भारत सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जैसा कि हम जानते हैं, प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) गतिविधि को बढ़ावा देना और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करना है।
उद्घाटन समारोह का समापन डॉ. प्रीति राय (सहायक प्रोफेसर, भूविज्ञान विभाग, सीयूएसबी) द्वारा प्रस्तावित धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उद्घाटन समारोह में विभिन्न विद्यालयों के डीन, विभागाध्यक्ष, संकाय सदस्य और विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल हुए। अगले सात दिनों तक भाग लेने वाले शिक्षाविद और शोधकर्ता भू-खतरों और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए उपलब्ध उन्नत तकनीक को समझने में सक्षम होंगे।