आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे की याद में सीयूएसबी ने राष्ट्रीय रसायन विज्ञान दिवस मनाया

डेस्क।दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के रसायन विज्ञान विभाग ने भारत में रसायन विज्ञान के जनक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की 163वीं जयंती पर राष्ट्रीय रसायन विज्ञान दिवस मनाया। जन सम्पर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि राष्ट्रीय रसायन विज्ञान दिवस मनाने का उद्देश्य आम लोगों के दैनिक जीवन में रसायन विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा करना था। सीयूएसबी के रसायन विज्ञान विभाग में भारतीय विज्ञान के विकास में आचार्य पीसी राय के अद्भुत योगदान को याद करते हुए विद्यार्थियों द्वारा चित्रांकन व पोस्टर सत्र तथा पावर प्वाइंट आधारित मौखिक प्रस्तुतियां दी गईं।

औपचारिक उद्घाटन के पश्चात विभागाध्यक्ष, प्रो. अमिय प्रियम ने कहा कि आचार्य जी सर्वोच्च ज्ञान, गुणों व मूल्यों की प्रतिमूर्ति थे तथा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, वैज्ञानिक, शिक्षक, इतिहासकार, उद्यमी व सामजसेवी थे, जिन्होंने भारत के वैज्ञानिक व शैक्षणिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में उन्होंने आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षण व अनुसंधान की मजबूत नींव रखी। वे अपने समय से आगे के दूरदर्शी थे। प्रोफेसर अतुल प्रताप सिंह ने भी आचार्य जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि वे न केवल एक वैज्ञानिक के रूप में उत्कृष्ट थे, बल्कि उद्यमी के रूप में भी उनकी कुशाग्रता स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जब उन्होंने बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स लिमिटेड नामक पहली रासायनिक विनिर्माण कंपनी की स्थापना की। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य पीसी राय की उपलब्धियाँ विस्मयकारी हैं और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

कार्यक्रम की शृंखला में आगे, डॉ. जगन्नाथ राय ने पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन देकर इतिहासकार के रूप में आचार्य पीसी राय की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही समृद्ध वैज्ञानिक विरासत रही है, लेकिन इसका कभी भी समुचित  प्रलेखन  नहीं किया गया। आचार्य पीसी राय ने संस्कृत और पाली में लिखे प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने में कड़ी मेहनत की और फिर उसे अंग्रेजी में संकलित कर पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। हमारी वैज्ञानिक विरासत की समृद्धि और गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 7000 साल पहले ऋषि अगस्त्य के कार्यों में जिंक-अमलगम बैटरी को खूबसूरती से समझाया गया था। विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए हमें प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच तालमेल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ. मौनी रॉय ने ‘प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में रसायन शास्त्र विषय’ पर चित्रकारी एवं पोस्टर सत्र का समन्वय किया। आकाश, अनुराग, ज्योत्सना, शालिनी, श्वेतलिना, सुष्मिता द्वारा बनाए गए पोस्टर सर्वश्रेष्ठ पोस्टरों में से एक चुने गए। आगे भारतीय विज्ञान की उन्नति में ए.पी.सी. रे का योगदान विषय पर भाषण एवं प्रस्तुतीकरण का आयोजन किया गया, जिसका समन्वयन प्रो. अतुल प्रताप सिंह ने किया। अमृता, अनुराग, अनुलता एवं कृष्णा द्वारा दी गई प्रस्तुतीकरण की सभी ने सराहना की तथा तदनुसार पुरस्कृत भी किए गए। पूरे कार्यक्रम का संचालन निधि एवं गौरव ने बखूबी किया। संकाय सदस्य डॉ. गिरीश चंद्र, डॉ. अंगद कुमार सिंह एवं डॉ. महेंद्र खटरावत ने भी आचार्य पी.सी.राय को श्रद्धांजलि दी तथा बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा भाग लेने के उत्साह एवं जुनून की सराहना की।

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