नया मीडिया पुराने मीडिया का विकल्प नहीं : डॉ. विपुल*
*न्यू मीडिया ने मजबूत किया संचार का लोकतंत्र : डॉ. विपुल*
*भाषा दिखाएगी पत्रकारिता में सफलता की राह : डॉ. विपुल सुनील*
बोधगया।तेजी से बदलती तकनीकी दुनिया मे मीडिया नित नए माध्यम खोज रही है। इससे वैकल्पिक मीडिया की संभावनाओं को बल मिला है। लेकिन ओल्ड मीडिया को पूरी तरह ख़ारिज कर देना कतई उचित नहीं है। ये बातें दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. सुनील विपुल ने कहीं। वे मगध विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग द्वारा आयोजित ‘न्यू मीडिया के माध्यम और भाषा के सवाल’ विषयक व्याख्यान में कहीं। इस व्याख्यान में ज़ूम के माध्यम से सहभागी जुड़े और हिन्दी विभाग मगध विवि नामक फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से इसका सजीव प्रसारण भी हुआ।
डॉ. विपुल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सोशल मीडिया या न्यू मीडिया को परंपरागत मीडिया का विकल्प मान लेना ठीक नहीं है। आज पत्रकारिता में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति घर बैठे एक क्लिक के सहारे अपनी बात को दुनिया भर में प्रसारित कर सकता है। वह किसी मौके या परंपरागत माध्यम का मोहताज नहीं है।
माध्यमों की भीड़ में भाषा के सवाल को डॉ. विपुल ने याद रखने को कहा। उन्होंने बताया कि बिना भाषा को माँजे कोई व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबी दूरी नहीं तय कर सकता। जिस माध्यम में उसकी पत्रकारिता है उस भाषा पर पूरी पकड़ व्यक्ति को अनिश्चित भविष्य में भी पर लगा सकती है।
आशीष रंजन, विकास कुमार, मिथिलेश, सोनू आदि विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर भी विपुल सुनील जी ने दिया। इस अवसर पर आयोजक पत्रकारिता विभाग के प्रभारी प्रो. पीयूष कमल सिन्हा, समन्वयक डॉ. परम प्रकाश राय, सहायक परीक्षा नियंत्रक डॉ. राकेश कुमार रंजन, डॉ. कुणाल किशोर, डॉ. किरण कुमारी के अतिरिक्त श्वेता सिंह, अमन्तोष, रीता, पल्लवी, पंकज आदि अनेक विभागों और विश्वविद्यालयों से विद्यार्थी और शोधार्थी जुड़े रहे।