अक्षयवट में सुफल के साथ त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध संपन्न
प्यारा बिहार
गया। बुधवार को पितरों की मोक्ष प्राप्ति को लेकर गया धाम आए पिंडदानियों ने अक्षयवट में पितरों के निमित्त पिंडदान कर अब तक किए गए पितृ अनुष्ठान को पूरा किया। इसी के साथ 17 दिवसीय गया श्राद्ध संपन्न हो गया। मंगला गौरी मंदिर के पीछे अक्षयवट वेदी पर बुधवार को अहले सुबह से ही 17 दिनी कर्मकांड करने वाले पिंडदानी पिंडदान करने पहुंचने लगे। यहां पिंडदानियों की इतनी भीड़ बढ़ गई थी पैर रखने की जगह तक नहीं मिली।पिंडदानियों ने पिंडदान की प्रक्रिया पूरी करने के बाद पिंड को अक्षयवट वृक्ष के पास चढ़ाया। साथ ही वट वृक्ष की टहनियों में धागा बांधकर पितरों के मुक्ति की कामना की।यहां पिंडदानियों ने जौ, खोआ के पिंड से श्राद्ध किया।यहां पर श्राप ग्रस्त फल्गु से शुरू हुआ पिंडदानियों द्वारा कर्मकांड कर अक्षयवट में पूजा करने के बाद संपन्न हो गया।
अक्षयवट में पिंडदान करने के बाद तीर्थयात्रियों ने ब्राह्मणों के बीच शय्या दान किया।उन्होंने उनकी पूजा अर्चना की। इसके बाद पिंडदानियों ने वट वृक्ष से पितरों को मोक्ष प्राप्ति की कामना की।इस दौरान गयापाल पंडों ने पिंडदानियों को सुफल यानी आशीर्वाद देकर पितृ विसर्जन की विदाई दी। इधर पितृ विसर्जनी अमावस्या होने के कारण देश के कई राज्यों से पिंडदानी अपने पितरों के मुक्ति को कामना को लेकर फल्गु के देव घाट, विष्णु पद मंदिर,सीताकुंड, प्रेतशिला, रामशिला, गजाधर घाट, गयासिर गया कूप, संगत घाट, पितामहेश्वर घाट, सूर्यकुंड, भीम गूंठा वेदी एवं गौ प्रचार पर पिंडदान किया। पिंडदान का कर्मकांड पूरा होते ही पिंडदानी भी अपने गंतव्य प्रदेश को लौटने लगे हैं। पितृपक्ष के अंतिम दिन के पितृ मोक्ष अमावस्या पर स्थानीय गयावासियों ने भी अपने पितरों के निमित्त तर्पण करने फल्गु घाट पहुंचे। फल्गु के घाटों पर भारी संख्या में स्थानीय लोगों ने स्नान ध्यान कर पितरों के लिए तर्पण किया। तर्पण के बाद विष्णु पद मंदिर में श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन कर अपने पितरों के मोक्ष की कामना की।
पितृ अमावस्या को लेकर लगभग 30,000 पिंडदानियों ने विष्णुपद मंदिर में श्राद्ध कर्म किया।
पौराणिक मान्यता है कि अक्षयवट में पिंडदान करने से पितरों को अक्षय ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। गया में पिंडदान कर्मकांड की शुरुआत फल्गु नदी से होती है। वही अंत अक्षय वट में होता है। मान्यता है कि यह सैकड़ो वर्ष पुराना वृक्ष है, जो आज भी हरा -भरा है। धार्मिक ग्रंथो के मुताबिक अक्षयवट के नीचे भोजन करने का भी अलग महत्व है। अक्षयवट के पास पूर्वजों को दिए गए दान कभी समाप्त नहीं होता है, जिसका अनंत फल मिलता है।