सड़क हादसे में मृत शहाबुद्दीन का शव जलाने के खिलाफ इंसाफ मंच ने निकाला कैंडल मार्च

SIT गठित करे राज्य सरकार, दोषी पुलिसकर्मियों पर हो कठोर कार्रवाई– तारिक अनवर*

*गया पुलिस की कार्यशैली से लोगों का भरोसा उठा– इंसाफ मंच*

गया।सैंकड़ों लोगों ने इंसाफ की मांग उठाते हुए पीड़ित के घर पुरानी करीमगंज से न्यू करीमगंज तक नारेबाजी करते हुए मार्च निकाला।

मार्च का नेतृत्व भाकपा माले नगर प्रभारी और इंसाफ मंच गया प्रभारी तारिक अनवर, आइसा नेता मो. शेरजहां, इंसाफ मंच जिला अध्यक्ष जामिन हसन कर रहे थे।

भाकपा माले नगर प्रभारी और इंसाफ मंच गया प्रभारी तारिक अनवर ने कहा कि शहाबउ‌द्दीन दुर्घटना मामले में गया पुलिस का बेहद लापरवाह और संवेदनहीन चेहरा सामने आया है।

मामला परैया थाना का है। गया शहर के पुरानी करीमगंज, बेल गली के रहने वाले 32 साल के मो. शहाबउ‌द्दीन 27 सितंबर को सुबह स्कूटी (BR02AR6841) से गुरारू के लिए निकले थे। रास्ते में परैया के पास पिकअप वैन से धक्के के कारण स्पॉट पर ही उसकी मौत हो गई। परैया थाना ने स्कूटी को जब्त कर शव को पोस्टमार्टम के लिए मगध मेडिकल कॉलेज, गया भेजा। शव की पहचान नहीं होने के कारण 72 घंटे शीतगृह में रखने के बाद पुलिस ने लाश का अंतिम दाह संस्कार कर दिया।

परिवार द्वारा अपने स्तर से खोजबीन होता रहा मगर पुलिस में गुमशुदगी का रिपोर्ट नहीं किया गया जो गलती रही। 8 अक्टूबर को परैया थाना में स्कूटी देखकर परिजन को पूरी घटना की जानकारी मिली।

इस घटना ने गया पुलिस के जांच पड़ताल के तरीके में भारी लापरवाही और अजात शव के अंतिम संस्कार में संवेदनहीनता को साबित किया है।

घटना 27 सितंबर की है मगर पुलिस ने FIR 8 अक्टूबर को दर्ज किया जब परिजन परैया थाना गए।

जब स्कूटी जब्त हुआ तो पुलिस ने मृतक के पहचान हेतु गाड़ी का डिटेल क्यों नहीं जुटाया। स्कूटी का रजिस्ट्रेशन मृतक के पिता मो. गुलाम हैदक के नाम से है।

मृतक के पास रहे मोबाईल के नंबर 9031991662 से पुलिस ने पहचान की कोशिश क्यों नहीं की।
अंतिम संस्कार करने में पुलिस ने शव की धार्मिक पहचान का ख्याल क्यों नहीं रखा। जबकि पोस्टमार्टम के समय ही यह स्पष्ट हो गया होगा।

पुलिस ने आपराधिक लापरवाही करते हुए मुस्लिम युवक को दफनाने के बजाए दाह संस्कार कर दिया।

गया शहर में कई मुस्लिम कब्रिस्तान हैं जहां अज्ञात शवों को दफनाने का पुरा सिस्टम बना हुआ है।

मार्च में मो. आतिफ अली खान, फेराज आलम, जियाउल हक, शाहबाज कमर, अबूजर, आसिफ हसन, मो. मनौवर, मो. फैजान, जमीम समेत बड़ी संख्या में स्थानीय लोग शामिल रहे।

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