सीयूएसबी में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का तुलनात्मक विश्लेषण विषय पर परिचर्चा का आयोजन

गया।दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के स्कूल ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस (एसएलजी) के अंतर्गत कार्यरत लीगल एड क्लिनिक द्वारा ‘कम्पेरेटिव एनालिसिस आफ भारतीय न्याय संहिता’ (बीएनएस) विषय पर आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में कानून से जुड़े विशषज्ञों ने नए कानून से सम्बंधित अपने विचार साझा किए |  सीयूएसबी के जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह के मार्गदर्शन में पैनल चर्चा  का आयोजन  प्रो. संजय प्रकाश श्रीवास्तव (प्रमुख और डीन, एसएलजी), डॉ. सुरेंद्र कुमार (लीगल एड क्लिनिक के समन्वयक) के साथ-साथ सह-समन्वयक डॉ. अनंत प्रकाश नारायण और डॉ. चंदना सूबा ने किया।

अतिथि वक्ता डॉ. असद मलिक (विधि विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय) नई दिल्ली ने  भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) का तुलनात्मक विश्लेषण विषय पर बोलते हुए बीएनएस में हुए बदलावों के बारे में चर्चा की | उन्होंने बीएनएस में जोड़े गए छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में जोड़ना, भीड़ द्वारा हत्या को मृत्युदंड के साथ अपराध के रूप में शामिल करना, झूठे वादे पर यौन संबंध बनाने के लिए सख्त सजा और इसी तरह सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड सहित जोड़े गए बीस नए अपराधों पर चर्चा की  । डॉ. मलिक ने बताया कि परिभाषा अनुभाग में जमानत, जमानत बांड और ई-संचार की परिभाषा जोड़ी गई है। जांच की प्रगति के बारे में पीड़ित को सूचित करने की प्रक्रिया, सूचना रिपोर्ट के 24 घंटे के भीतर पीड़ित की चिकित्सा जांच, पीड़ितों के लिए मुफ्त चिकित्सा उपचार, फैसले की मुफ्त प्रति, इलेक्ट्रॉनिक जांच, पीड़ित के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग, 7 दिनों के भीतर चिकित्सक द्वारा चिकित्सा रिपोर्ट, और पीड़ितों के हितों को ध्यान में रखते हुए कई अन्य महत्वपूर्ण बदलाव भी किए गए हैं।

पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अवधेश कुमार ने कानून में महत्वपूर्ण बदलावों और कानूनी व्यवस्था के लिए उनके निहितार्थों पर प्रकाश डालते हुए एक ज्ञानवर्धक प्रस्तुति दी। उन्होंने निष्पक्ष और प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए नए कानूनों को समझने के महत्व पर जोर दिया।  उन्होंने बताया कि ये पिछले कानूनों में कुछ नाममात्र के बदलाव हैं। वकील और पुलिस अधिकारियों को ज्यादा दिनों तक समस्या नहीं होगी, यह केवल धाराओं की संख्या में बदलाव है, और कुछ ही नए धाराएं जोड़ी गई है |

अन्य अतिथि वक्ता डॉ. शशिकांत त्रिपाठी (निदेशक, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर) ने भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया । वक्ता ने बताया कि कैसे बीएनएसएस सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाएगा और व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करके निर्दोषों की रक्षा करेगा |   डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि बीएनएसएस समय सीमा के भीतर न्याय प्रदान करने के साथ – साथ  आपराधिक न्याय प्रणाली में पुलिस, अभियोजक और न्यायपालिका की भूमिका को कैसे प्रभावित करेगा।

नए आपराधिक कानूनों के बारे में विभिन्न अंतर्दृष्टि पर प्रो. एसपी श्रीवास्तव और डॉ. सुरेंद्र कुमार द्वारा भी  चर्चा की गई। चर्चा का समापन प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जिसमें वक्ताओं द्वारा प्रतिभागियों को विकसित हो रहे आपराधिक कानूनों से संबंधित प्रश्नों के उत्तर दिए गए |

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