Sunday, November 23, 2025
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शैक्षिक समृद्धि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम: डायट, गया के डी.एल.एड. प्रशिक्षुओं का राजगीर–नालंदा शैक्षिक भ्रमण

गयाजी।जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट), गया में डी.एल.एड. सत्र 2024–26 के प्रशिक्षुओं के लिए 22 नवम्बर 2024 को एक दिवसीय शैक्षिक परिभ्रमण का सफल आयोजन किया गया। यह परिभ्रमण  शिक्षण–अधिगम प्रक्रियाओं को प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से समृद्ध करने तथा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक धरोहरों की समझ विकसित करने हेतु आयोजित किया गया था।
परिभ्रमण को संस्थान के  प्राचार्य डॉ. अजय कुमार शुक्ला द्वारा प्रातः 6:30 बजे चार बसों को हरी झंडी दिखाकर दल को रवाना किया गया। कुल 150 प्रशिक्षुओं, संकाय सदस्यों एवं कर्मियों ने इस परिभ्रमण में शामिल होकर भरपूर आनंद उठाया। एक दिवसीय संचालित यह परिभ्रमण रात 8:00 बजे सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। शैक्षिक परिभ्रमण का उद्देश्य प्रशिक्षुओं को भारतीय सांस्कृतिक धरोहर, ऐतिहासिक महत्व के स्थलों तथा खेल शिक्षा की आधुनिक अवधारणाओं से प्रत्यक्ष परिचित कराना था।
पहले चरण में परिभ्रम दल ने शांति स्तूप, राजगीर का भ्रमण किया। पूरा परिभ्रमण दल रोपवे के ज़रिए स्तूप तक पहुँचा जिससे यात्रा और भी मनोरंजक और रोमांचक हो गई। वहाँ के शांत और आध्यात्मिक वातावरण, आकर्षक सफ़ेद वास्तुकला उनके लिए आकर्षण का केंद्र रहा। प्रशिक्षुओं ने पहाड़ी की चोटी पर स्थित, यह स्तूप आसपास के परिदृश्य का मनमोहक मनोरम दृश्य भरपूर लुफ्त उठाया। शांति स्तूप के शांत वातावरण और बौद्ध स्थापत्य कला ने प्रशिक्षुओं को शांति, करुणा एवं बौद्ध दर्शन से परिचित कराया।
इसके पश्चात परिभ्रमण में प्रशिक्षुओं ने बिहार स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, राजगीर का अवलोकन किया, जहाँ उन्हें आधुनिक खेल सुविधाओं, प्रशिक्षण मॉड्यूल, फिटनेस विज्ञान तथा खेल–शिक्षा प्रणाली के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गई। प्रशिक्षुओं ने खेल आधारित शिक्षा और टीमवर्क के महत्व को प्रत्यक्ष रूप से समझा।
इसके बाद प्रशिक्षुओं ने राजगीर में स्तिथ विरायतन  जो की एक जैन धार्मिक और सामाजिक सेवा संगठन है जिसकी स्थापना 1973 में आचार्य श्री चंदनजी ने की थी। यह स्थान मानवता की सेवा, शिक्षा और आत्म-विकास पर केंद्रित है का भ्रमण किया, जहाँ उन्होंने जैन दर्शन, अहिंसा, सेवा और नैतिक शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण विचारों का अवलोकन किया। शैक्षिक परिभ्रमण का अंतिम पड़ाव नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेष रहे। प्रशिक्षुओं ने इस विश्वप्रसिद्ध प्राचीन विश्वविद्यालय के विहारों, अध्ययन पद्धतियों, शोध परंपराओं और शिक्षा के ऐतिहासिक स्वरूप का गहन निरीक्षण किया। इस स्थल ने प्रशिक्षुओं को भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक शिक्षा इतिहास की गहरी समझ प्रदान की।
शैक्षिक परिभ्रमण से प्रशिक्षुओं में न केवल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और खेल–शिक्षा संबंधी ज्ञान का विस्तार हुआ, बल्कि उनमें नेतृत्व क्षमता, अवलोकन कौशल, टीमवर्क, अनुशासन और मूल्य आधारित शिक्षा के प्रति संवेदनशीलता भी विकसित हुई। प्रशिक्षुओं ने अनुभव किया कि भ्रमण आधारित शिक्षा सीखने की प्रक्रिया को अधिक जीवंत, रोचक और अर्थपूर्ण बनाती है। संस्थान के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार शुक्ला ने भ्रमण की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे अनुभव प्रशिक्षुओं को कक्षा शिक्षण के लिए अधिक सक्षम और समग्र बनाते हैं साथ ही शिक्षण–अधिगम के सबसे प्रभावी, जीवंत और समृद्ध माध्यमों में से एक है। यह प्रशिक्षुओं के मानसिक, सामाजिक और व्यावसायिक विकास में अमूल्य योगदान देता है।उन्होंने सभी संकाय सदस्यों और प्रशिक्षुओं को सफल आयोजन हेतु बधाई दी। इस पूरे परिभ्रमण का सफल संचालन एवं समन्वयं व्याख्याता श्री बरुन कुमार के नेतृत्व में किया गया।परिभ्रमण दल में प्राचार्य सहित व्याख्याता श्रीमती निधि नैनम, श्री चन्द्रशेखर कुमार, श्री रोहित कुमार, श्रमती एकता कनौजिया, श्रीमती वंदना कुमारी, श्रीमती रीना कुमारी, श्री संजीत कुमार, ह्यूमाना से डॉ अमित रत्न द्विवेदी, मिस वर्षा कुमारी, श्री मंसूर अंसारी, एडमिन प्रीतम कुमार, रामकृष्ण मूर्ति और राहुल कुमार शामिल रहे।

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