वजीरगंज (गया)कार्तिक छठ महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को वजीरगंज प्रखंड के शहरी एवं देहाती क्षेत्रों में छठ व्रतियों एवं श्रद्धालुओ ने श्रद्धा पूर्वक खरना क़ा प्रसाद ग्रहण किया । इस कार्तिक छठ महापर्व में खरना का विशेष महत्व है इस पर्व क़ा दूसरा दिन होता है । खरना को लोहंडा भी कहते हैं। छठ पर्व में खरना का विशेष महत्व है।इस दिन व्रत रखा जाता है और रात में रसिया (खीर) या चावल-दाल एवं चावल क़ा पिट्ठी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
छठ का पावन पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है।इस पर्व में महिलाएं व्रत रखकर सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा करती हैं और संतान की प्राप्ति, बच्चों की अच्छी सेहत और दीर्घायु होने की कामना करती है।इस पूजा में पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।वहीं, चौथे दिन सुबह-सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पारण किया जाता है।
खरना पर दिन में व्रत रखा जाता है और रात में पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसके बाद व्रती छठ पूजा के पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं। इसके पीछे का मकसद तन और मन को छठ पारण तक शुद्ध रखना होता है।
खरना के दिन रसिया, खीर या चावल दाल एवं चावल क़ी पिट्ठी का विशेष प्रसाद बनाया जाता है। यह प्रसाद खीर दूध और गुड़ एवं चना के दाल और अरवा या बासमती चावल से बनाया जाता है।इस प्रसाद को हमेशा मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है और इसमें आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। खरना वाले दिन पूरियां और मिठाइयों का भी भोग लगाया जाता है।छठ मैया को भोग लगाने के बाद व्रती इसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।खरना पर प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है।जब खरना पर व्रती प्रसाद ग्रहण करती है तो घर के सभी लोग बिल्कुल शांत रहते हैं. चूंकि मान्यता के अनुसार, शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है. साथ ही व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो उसके बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं।