लोकप्रियता और उत्कृष्टता का अद्भुत समन्वय हैं नागार्जुन की कविताएं : प्रो. अवधेश प्रधान


बोधगया।नागार्जुन की कविताएं सामान्य जनता को भी राजनीतिक रूप से विवेकवान बनाती हैं। वे अपनी रचनाओं में अनुद्घाटित सौंदर्य और अछूते बिम्बों को सामने रखते हैं। उनकी कविताओं में लोकप्रियता और उत्कृष्टता का अद्भुत समन्वय है। उक्त बातें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य रहे प्रो. अवधेश प्रधान ने ‘जनप्रतिबद्धता के अपूर्व कवि नागार्जुन’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में रखीं। यह संगोष्ठी सोमवार को एमयू बोध गया के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित की गयी थी।
         प्रो. प्रधान ने मुख्य अतिथि के अपने वक्तव्य में बताया कि नागार्जुन संस्कृत, पाली, प्राकृत, बौद्ध दर्शन, बंगाली, मैथिली, हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के प्रकांड विद्वान् थे लेकिन हिन्दी से उन्हें विशेष प्रेम था। वे पड़ोस के दिखने वाले एक आम आदमी की तरह सहज रहे और यही सहजता उनकी कविताओं में प्रतिबिम्बित होती है। पाँच पूत भारत माता के नामक  नागार्जुन की कविता राजनीतिक रूपक और करुणा का सुंदर उदाहरण है। इसी प्रकार सिंदूर तिलकित भाल कविता में दाम्पत्य प्रेम की प्रगाढ़ता का चित्रण है। परदेसी पिता द्वारा पहली बार अपने नवजात शिशु को देखने का सौंदर्य दंतुरित मुस्कान कविता में नागार्जुन व्यक्त करते हैं।
        विशिष्ट अतिथि के रूप में आये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष रहे प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि आजकल एक ऐसी संस्कृति पैदा हुई है जहाँ मनुष्य के मूल्यों की जगह वस्तुओं के मूल्यों ने ले ली है। नागार्जुन की कविताएं मनुष्यता को केंद्र में रखती हैं। रूप, रस, गंध और स्पर्श के अनुभवों से भरी हुई हैं उनकी कविताएं। भुने जाते हुए भुट्टे की गंध अमीर से लेकर अतिवंचित व्यक्ति तक को समान रूप से अपने आगोश में लेती है। उनकी राजनीतिक व्यंग्य कविताएं भी कम मार्मिक नहीं हैं। कबीर से शुरू हुई हिन्दी व्यंग्य कविता आधुनिक कबीर नागार्जुन तक आते आते अपने शीर्ष पर पहुंचती है। नागार्जुन की कविता जो नहीं हो सके पूर्णकाम उनको प्रणाम का सुंदर पाठ प्रो. शाही जी ने प्रस्तुत किया।
          प्रो. सुनील कुमार ने बताया कि नागार्जुन का व्यंग्य-विधान अद्भुत था। वे अपने को जनता का कवि घोषित करते थे। इसके पहले ऐसा किसी कवि ने नहीं किया। हरिजन गाथा कविता के संदर्भ में बेलछी कांड के दूसरे पक्ष को देखे जाने की ज़रूरत पर सुनील जी ने जोर दिया।
डॉ. कृष्णनंदन यादव, डॉ. आनंद कुमार सिंह, डॉ. अनुज कुमार तरुण, डॉ. अम्बे कुमारी ने संक्षेप में नागार्जुन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. परम प्रकाश राय ने किया। डॉ. राकेश कुमार रंजन ने परिचय वक्तव्य प्रस्तुत किया। विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रजेश कुमार राय और पूर्व विधायक डॉ. कृष्णनंदन यादव ने अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र और स्मृतिचिह्न प्रदान कर किया। इस अवसर पर बौद्ध अध्ययन विभाग के कई अंतरराष्ट्रीय शोधार्थी भी मौजूद थे। इसके अतिरिक्त डॉ. किरण कुमारी, हिन्दी शोधार्थी कुणाल किशोर, सुमन कुमारी, पौल्टी कुमारी और स्नातकोत्तर के तमाम विद्यार्थी सभागार में मौजूद रहे।

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